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वैदिक सनातन धर्म में गाय को माता के समान सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। गाय सदैव कल्याणकारिणी तथा पुरुषार्थ-चतुष्टय की सिद्धि प्रदान करने वाली है। मानव जाति की समृद्धि गाय की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है। गोपाष्टमी के पावन पर्व पर लोगों गौ माता का पूजन-परिक्रमा कर विश्व की मंगल कामना की प्रार्थना करते हैं।
गाय आधिदैविक, अधिदैहिक एवं आधिभौतिक तीनों तापों का नाश करने में सक्षम है। इसी कारण अमृततुल्य दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोमय तथा गोरोचना-जैसी अमूल्य वस्तुएं प्रदान करने वाली गाय को शास्त्रों में सर्वसुखप्रदा कहा गया है।
गाय ऊर्जा का स्रोत है। गांव की अर्थव्यवस्था में गाय की महत्वपूर्ण भूमिका है। विज्ञान और कंप्यूटर के युग में भी गौमाता की महत्ता यथावत बनी हुई है।
एक गौमाता एक पूरे परिवार का भरणपोषण कर सकती है। बीमारियों के इलाज के लिए गौमूत्र से विभिन्न प्रकार की औषधियों का निर्माण हो रहा है।
पौराणिक मान्यता है कि गोपाष्टमी पर गौ माता को स्नान कराकर विधिवत पूजा व घास व मिठाई खिलाने से सभी मनोकामना पूरी होती है। सायंकाल में गौ माता को प्रणाम करके मंत्रोच्चार सहित पूजा कर गौधूल का तिलक लगाने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। ऐसी आस्था है ‍कि गोपाष्टमी के दिन गाय के नीचे से निकलने पर बड़ा पुण्य मिलता है।
गौ माता का हमारे उत्तम स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। गोमूत्र मनुष्य जाति तथा वनस्पति-जगत को प्राप्त होने वाला दुर्लभ वरदान है। यह धर्मानुमोदित, प्राकृतिक, सहज प्राप्य, हानिरहित, कल्याणकारी तथा आतुर के रसायन है। स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य रक्षण तथा आतुर के विकार-प्रशसन हेतु आयुर्वेद में गोमूत्र को दिव्यौषधि माना गया है।

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© 2011 by Kishan Amar Mandal 

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